नेशनल हाईवे 130 सी पर बसा ग्राम तौरेंगा किसी परिचय का मोहताज नहीं लेकिन बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा
- शेख हसन खान, गरियाबंद
- देश के तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी सहित पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, पंडित श्यामचरण शुक्ल, अजीत जोगी, भूपेश बघेल सहित कई बडे़ नेता आ चुके हैं इस गांव
- गांव के बीचों बीच सीने को चीरते हुए बिजली की हाई टेंशन तार गुजरी है लेकिन इस गांव में जलती है लालटेन
गरियाबंद। आजादी के 75 वीं वर्षगांठ को अमृत उत्सव के रूप में पुरे देश में मनाया जा रहा है, लेकिन आजादी के सात दशक बाद भी मैनपुर तहसील मुख्यालय से महज 22 किलोमीटर दुर नेशनल हाईवे 130 सी के उपर बसे ग्राम तौरेगा में आज तक बिजली की रौशनी नहीं पहुंची है। यह ग्राम पंचायत में 50 प्रतिशत आबादी विशेष पिछडी जनजाति कमार आदिवासियों की है और सबसे मजेदार बात यह है कि इस गांव से होकर 132/33 केव्ही विद्युत केन्द्र में बिजली की हाईटेंशन तार गई है। इसके बावजूद दिया तले अंधेरा को यह गांव चरितार्थ कर रहा है। ग्राम पंचायत तौरेंगा कि जनसंख्या लगभग 1830 के आसपास है और इसके दो आश्रित ग्राम कोदोमाली तथा जुंगाड है।
- देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ कई मुख्यमंत्री इस गांव में पहुंच चुके है
ग्राम तौरेंगा किसी परिचय का मोहताज नही है यहां वन विभाग के विश्राम गृह मे अविभाजित मध्यप्रदेश जमाने से कई मुख्यमंत्री केन्द्रीय मंत्री पहुंचते रहे है और तो और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी ओड़िशा से सड़क मार्ग होते हुए जब रायपुर जा रहे थे तो उन्होने तौरेंगा मे रूककर ग्रामीणो से मुलाकात किया था और यहां के वन विश्राम गृह में भोजन किया था। यह सब बाते यहा के ग्रामीण बताते आ रहे है बावजूद इसके आजादी के 75 वर्षो बाद ग्राम तौरेंगा मूलभूत बुनियादी सुविधाओ के लिए तरस रहा है। ग्राम तौरेंगा में अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालिन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, पंडित श्यामाचरण शुक्ल के साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व राज्यपाल के.एम सेठ, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी आ चुके है और तो और छत्तीसगढ वर्तमान मुख्यमंत्री भुपेश बघेल , अग्निी चंद्राकर, रविन्द्र चैबे, ओंकार शाह भी वर्ष 2004 में जब हीरा खदान में अवैध खुदाई का मामला विधानसभा में उठा था तो तौरेंगा स्थित विश्राम गृह में दो दिनो तक रूककर हीरा खदानों का निरीक्षण किये थे और तो और ओडिसा के भी मंत्री विधायक यहा समय समय पर पहुचते रहे है इसके बावजूद भी ग्राम तौरेंगा मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से जुझ रहा है।
- ब्रिटिश हुकुमत के समय घोंडे के टाप की आवाज इस गांव में गुंजती थी
ग्राम तौरेंगा ब्रिटिश शासनकाल में भी काफी प्रसिद्ध स्थान रहा है यहां ब्रिटिश जमाने के सराय विश्राम गृह भी है जो अब जर्जर हो चुके है, जहां ब्रिटिश अफसर कभी रूका करते थे और इस क्षेत्र के जंगलों में वन्य प्राणियों के शिकार करते थे। ब्रिटिश शासन मे यहां सराय के सामने उनके घोड़े को रखने के लिए अस्तबल बनाया गया था। गांव के कुछ बुजुर्ग आज भी बताते है कि उनके बाप दादाओं ने उन्हे बताया था कि अंग्रेज शासन मे घोड़ो के टाप से यह गांव दहल जाता था और तो और इस गांव मे विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक कुंआ भी है जिसका पानी मिनरल वाटर की शुद्ध और मीठा है। इस पानी को फिल्म स्टार असरानी जब तौरेंगा विश्राम गृह मे रूके थे तो अपने साथ जरकीन मे भरकर बाॅम्बे ले गया था और तो और जब भी कोई बड़े नेता और अफसरो की आज भी इस क्षेत्र मे दौरा होता है तो तौरेंगा के इस ऐतिहासिक कुएं की पानी पीना नहीं भुलते।
- बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल मूलभूत समस्याओं से जुझ रहा है
ग्राम तौरेंगा आजादी के सात दशक बाद भी मूलभूत बुनियादी सुविधाओ के लिये तरस रहा है। स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पेयजल, राशन जैसे मूलभूत सुविधाएं इन्हे उपलब्ध नही हो पा रही है जबकि यह गांव नेशनल हाइवे मे बसा होने के कारण आये दिनों बड़े अफसर व जनप्रतिनिधि इसी ग्राम से होकर गुजरते है और यहां के ग्रामीण हमेशा इस ग्राम मे बिजली लगाने की मांग प्रमुखता के साथ करते हैं। आज तक इस गांव मे बिजली नहीं लगी है। कहने को गांव में सौर उर्जा प्लेट लगाया गया है लेकिन वह महज एक दो घंटे ही जल पाता है फिर पुरी रात ग्राम लालटेन की रौशनी मे जिंदगी बसर करने मजबूर हो रहे हैं। ग्राम पंचायत तौरेंगा के सरपंच परमेश्वर नेताम, उपसरपंच अनूप कुमार कश्यप ने बताया कि इस गांव की सबसे पुरानी मांग बिजली की है। इस गांव के उपर से होकर बिजली की तारे देवभोग की तरफ गई है लेकिन कई बार आला अधिकारियो से लेकर जनप्रतिनिधियों को आवेदन निवेदन करने के बावजूद अबतक गांव मे बिजली नही लगाई गई है। सौर उर्जा घंटा दो घंटा मुश्किल से जल पाता है गांव मे कब बिजली लगेगा बताने वाला कोई नहीं है। ग्राम तौंरेगा के लोगो को राशन के लिये सरकारी सोसायटी 08 किमी दूर जुगांड़ जाना पड़ता है। स्कूल भवन को तोड देने से गांव में बच्चों को पढ़ाई करने में भारी दिक्कतों का सामना पिछले दो वर्षो से करना पड़ रहा है। कमार जनजाति योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल रहा है।