Recent Posts

November 22, 2024

समाचार पत्र और मीडिया है लोकतंत्र के प्राण, इसके बिन हो जाता है देश निष्प्राण।

एनएमडीसी नगरनार द्वारा किये गए लिंगभेद के कारण नौकरी से वंचित 71 बेटियों के प्रकरण पर महिला आयोग ने शुरू की सुनवाई

1 min read
  • एक लाख रुपए प्रतिमाह का भरण-पोषण हुआ निर्धारित
  • महिला उत्पीड़न के मामलों में करें त्वरित कार्रवाई: अध्यक्ष डॉ. श्रीमती नायक

रायपुर, 04 जनवरी 2021/छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग द्वारा एनएमडीसी नगरनार द्वारा किये गए लिंगभेद के कारण नौकरी से वंचित 71 बेटियों के प्रकरण पर महिला आयोग ने सुनवाई शुरू कर दी है। वहीं महिला उत्पीड़न से संबंधित प्रकरणों में प्रशासन को संवेदनशीलता के साथ त्वरित कार्रवाई के निर्देश भी छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. श्रीमती किरणमयी नायक ने सुनवाई के दौरान दिए। सोमवार को जिला कार्यालय जगदलपुर के प्रेरणा कक्ष में छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग द्वारा सुनवाई की गई। यहां महिला उत्पीड़न और महिलाओं के साथ भेदभाव संबंधी 88 प्रकरण सुनवाई के लिए रखे गए थे। सुनवाई के दौरान महिला उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों में संवेदनशीलता के साथ त्वरित कार्यवाही के निर्देश दिए गए।

बडांजी थाना में बैंक प्रबंधक के विरुद्ध की गई शिकायत और करपावंड में महिला उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों पर मामला दर्ज नहीं किए जाने पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की।
एनएमडीसी के नगरनार इस्पात संयंत्र में भू-विस्थापित महिलाओं को नौकरी दिए जाने के 71 मामलों की सुनवाई की गई। सुनवाई के दौरान आवेदक महिलाएं और अनावेदक के तौर पर इस्पात संयंत्र के अधिशासी निदेशकों से उनका पक्ष लिया गया। सुनवाई के दौरान आवेदक महिलाओं ने बताया कि इस्पात संयंत्र की स्थापना के लिए वर्ष 2001 में और वर्ष 2010 में बड़ी मात्रा में भू-अर्जन किया गया था। वर्ष 2001 में किए गए भू-अर्जन के बाद जहां सभी खातेदारों के परिवार के एक-एक सदस्य को नौकरी और मुआवजा दिया गया वहीं वर्ष 2010 में किए गए भू-अर्जन के बाद छत्तीसगढ़ शासन के भू-अर्जन नीति-2007 का हवाला देकर मात्र परिवार के पुरुष सदस्यों को ही नौकरी दी गई, जबकि बेटियों को नौकरी नहीं दी गई, जिसके खिलाफ 71 बेटियों ने महिला आयोग में आवेदन प्रस्तुत किया।

आवेदकों ने इसे संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया। वहीं सुनवाई के दौेरान इस्पात संयंत्र प्रबंधन द्वारा पुनर्वास नीति में उल्लेखित नियम के अनुसार ही पात्र भू-विस्थापितों को नौेकरी देेने की बात कहते हुए बेटियों को नौकरी दिए जाने के लिए उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन प्राप्त करने की बात कही गई।

इस मामले की सुनवाई करते हुए आयोग की अध्यक्ष डॉ. श्रीमती नायक ने कहा कि शासन की पुनर्वास नीति संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकार के विपरीत नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान लिंगभेद की अनुमति प्रदान नहीं करता है और किसी भी कानून में लिंगभेद को न तो मान्यता दी गई है, न ही बेटे या बेटी में फर्क किया गया है। उन्होंने एनएमडीसी के अधिकारियों से कहा कि वे आगामी सुनवाई तिथि को इस संबंध में स्पष्ट जानकारी प्रस्तुत करें। एनएमडीसी इस्पात संयंत्र प्रबंधन द्वारा नौकरी देने हेतु नीतिगत बदलाव के लिए स्वयं सक्षम नहीं होने तथा उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए समय मांगे जाने पर उन्होंने आगामी 18 जनवरी को जगदलपुर में ही सुनवाई की तिथि निर्धारित की।

एक लाख रुपए का मासिक भरण-पोषण

यहां महिला आयोग द्वारा अलग-अलग रह रहे डॉक्टर दंपत्ति से संबंधित मामलों की सुनवाई के दौरान एक लाख रुपए प्रतिमाह के भरण-पोषण की राशि पर पति-पत्नी आपसी राजीनामा से तलाक लेने के लिए सहमत हुए। आवेदिका महिला द्वारा बताया गया कि पिछले दो साल से उनके पति ने जीवन निर्वाह के लिए कोई आर्थिक राशि नहीं दी है। इससे बच्चों के पालन-पोषण में भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है और वह कर्ज लेकर अपना जीवन निर्वाह कर रही है। आयोग की अध्यक्ष डॉ. श्रीमती नायक ने चिकित्सक पति को अपने बच्चों के प्रति संवेदनशील होने की समझाईश देते हुए एक लाख रुपए प्रतिमाह के भरण-पोषण की राशि पर पति-पत्नी को आपसी राजीनामा से तलाक के मामले के निदान के लिए सहमत किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *