तीन हार्डकोर नक्सलियों ने गरियाबंद पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया
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- शेख हसन खान, गरियाबंद
गरियाबंद। जिले में नक्सल मुक्त अभियान के तहत पुलिस को बड़ी सफलता मिली है। राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रभावित होकर तीन हार्डकोर नक्सलियों ने गरियाबंद पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। इनमें दो महिलाएं मंजुला और सुनीता तथा एक पुरुष दिलीप उर्फ संतु शामिल हैं। सोमवार को एडीजी, आईजी अमरेश मिश्रा, सीआरपीएफ डीआईजी और 211 बटालियन के सीईओ की मौजूदगी में पुलिस अधीक्षक निखिल राखेचा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि तीनों नक्सली बड़े कैडर के हैं और कई बड़ी घटनाओं में शामिल रहे हैं। इन पर कुल 15 लाख का इनाम था। बड़ी बात यह है कि इन्होंने ऑटोमैटिक हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पण नीति के तहत राज्य सरकार ने प्रत्येक को 25 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि दी है।
पुलिस अधीक्षक निखिल राखेचा के पदस्थापना के बाद से जिले में नक्सल विरोधी अभियान में लगातार सफलता मिल रही है। सघन सर्चिंग अभियान से नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है। बार-बार उन्हें ठिकाने बदलने पड़ रहे हैं। बीते महीने ही मुठभेड़ में पुलिस ने 17 नक्सलियों को मार गिराया था। इसमें नक्सलियों को बड़ा नुकसान हुआ था। सेंटर कैडर के बड़े नक्सली को भी मार गिराने में सफलता मिली थी। पुलिस की रणनीति के आगे अब नक्सलियों के हौसले टूटने लगे हैं। इसी कारण वे हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौटने के लिए आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
एसपी निखिल राखेचा ने कहा कि एसटीएफ और सीआरपीएफ की टीम बेहतर काम कर रही है। पुलिस की सक्रियता से नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है। राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति से प्रेरित होकर तीन नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया है। एडीजी ने कहा कि बस्तर और रायपुर के नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस बेहतर रणनीति से काम कर रही है। नक्सलियों के इको सिस्टम और कैडर को ध्वस्त करने की कार्रवाई जारी है। हमारा उद्देश्य है कि नक्सली आत्मसमर्पण नीति का लाभ उठाकर समाज के विकास में योगदान दें। इसी कड़ी में गरियाबंद में पुलिस को बड़ी सफलता मिली है। शासन की योजनाओं और नीतियों का व्यापक प्रचार किया जा रहा है, ताकि नक्सली मुख्यधारा में लौटें।
- दिलीप उर्फ संतु
ग्राम केसेकोडी, थाना कोयलीबेडा, जिला कांकेर का रहने वाला है। 2012 में शंकर नामक नक्सली ने इसे माओवादी संगठन में भर्ती कराया। छह महीने तक रावघाट एरिया कमेटी में काम किया। फिर सोनू नामक नक्सली इसे गरियाबंद के ताराझर क्षेत्र में लेकर आया। यहां दशरू उर्फ कार्तिक ने इसे अपना गार्ड बनाया, जहां 2015 तक काम किया। इसके बाद इसे मैनपुर लोकल गोरिल्ला स्क्वाड में भेजा गया, जहां 2016 तक सक्रिय रहा। 2017 में इसे गरियाबंद-नुआपाड़ा सीमा पर सक्रिय एसडीके एरिया कमेटी में भेजा गया। 2020 तक सदस्य रहा और फिर डिप्टी कमांडर बना। इस दौरान गोबरा, उदंती, सीतानदी और आमामोरा क्षेत्र में कई माओवादी घटनाओं में शामिल रहा। सिकासेर जंगल में मुठभेड़ और भालूडिग्गी पहाड़ी में 16 माओवादियों के मारे जाने की घटना में भी शामिल था।
- मंजुला उर्फ लखमी
ग्राम गोंदीगुडेम, थाना गोलापल्ली, जिला सुकमा की रहने वाली है। 2016 में किस्टाराम एरिया कमेटी के सोमा नामक नक्सली ने इसे संगठन में भर्ती किया। तीन महीने बाद माओवादी डॉक्टर उंगी इसे अबूझमाड़ लेकर गया। फिर रावघाट डीवीसीएम तीजू इसे धमतरी के सीतानदी क्षेत्र में छोड़कर चला गया। यहां जयराम उर्फ गुड्डू ने इसे अपना गार्ड बनाया, जहां 2019 तक रही। इसके बाद इसे एसडीके एरिया कमेटी में भेज दिया गया, जहां 2025 तक सक्रिय रही। आमामोरा, सोनाबेड़ा और पाताघरा क्षेत्र में कई माओवादी घटनाओं में शामिल रही। सिकासेर जंगल में मुठभेड़ और भालूडिग्गी पहाड़ी में 16 माओवादियों के मारे जाने की घटना में भी शामिल थी।
- सुनीता उर्फ जुनकी
ग्राम पोटेन, थाना जांगला, जिला बीजापुर की रहने वाली है। 2010 में भैरमगढ़ एरिया कमेटी के रैमोती नामक नक्सली ने इसे संगठन में भर्ती किया। 2011 में सीसीएम कोसा इसे ओडिशा के बरगढ़ क्षेत्र में लेकर गया। तब से 2024 तक बरगढ़ एरिया कमेटी में रविंदर डीवीसीएम और अमीला कमांडर के साथ काम कर रही थी। एसजेडसीएम विकास इसे दिसंबर 2024 में गरियाबंद लेकर आया। जनवरी 2025 में विकास एसजेडसी मीटिंग के लिए गरियाबंद के भालूडिग्गी पहाड़ी में इकट्ठा हुआ। इसी दौरान पुलिस के साथ मुठभेड़ हुई, जिसमें विकास को गोली लगी। सुनीता इस घटना में शामिल थी और वहां से भागने में सफल रही।